Saturday, December 11, 2010

सुब्रह्मण्यम स्वामी का सनसनीखेज खुलासा

स्वामी का सनसनीखेज खुलासा

टू-जी स्पेक्ट्रम मामले में प्रधानमंत्री कार्यालय और केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट से फटकार दिलवाने वाले जनता पार्टी ने यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के भी इस घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया है....इस घोटाले में शुरू से ही सक्रिय भूमिका निभाने वाले स्वामी ने सोनिया गांधी को बहनों को इस मामले में घूस दिये जाने का आरोप लगाया है..

करकरे पर दिग्गी की किरकिरी

कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक बार फिर वोट बैंक की राजनीति के लिए सारी सीमाय़ें तोड़ दी हैं॥बाटला हाउस एनकाउंटर पर सवाल उठाने के बाद अब उन्होंने मुम्बई हमले में शहीद हुए एटीएस चीफ हेमंत करकरे की मौत की दिशा को किसी और तरफ मोड़ने की कोशिश की है...उन्होंने कहा है कि....मुम्बई हमले से तीन से चार घंटे पहले करकरे ने उनसे अपनी जान पर मालेगांव के आऱोपियों के समर्थकों द्वारा खतरा बताया था....हालांकि, दिग्विजय के इस बयान से खुद उनकी पार्टी ने पल्ला तो झाड़ ही लिया है....जिसे घोटालों के महाजाल से निकालने की कोशिश में मीडिया और विपक्ष का ध्यान भटकाने की कोशिश में उन्होंने ये बयान दिया है...वहीं, विपक्ष ने कांग्रेस के इस लाड़ले और विवादास्पद महासचिव औऱ मुल्ला मुलायम की राह पर चल रहे दिग्गी राजा को जमकर लताड़ लगाई है,,,जहां भाजपा महासचिव रविशंकर प्रसाद ने उनसे अपील की है कि....घटिया राजनीति के लिए देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ न करें वहीं, पार्टी उपाध्यक्ष मुख्तार अब्बास नक़वी ने उनके बयान को ठीक वैसा करार दिया है जैसे पाकिस्तान में आतंकवादियों के प्रवक्ता दिया करते हैं....मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और यूपी में कांग्रेस की वापसी के लिए कमान संभाले दिग्विजय को हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने भी लताड़ लगाई है,,,उन्होंने कहा है कि...देश की सुरक्षा के लिए जान देने वाले हेमंत की जान पर राजनीति नहीं होनी चाहिए....भाजपा नेता विनय कटियार ने तो दिग्गी राजा का मानसिक संतुलन खराब हो जाने की संभावना जताई है...दिग्गी राजा॥राजनीति के लिए इतना नीचे तो ना गिरो...कि, जब उठने की भी कोशिश करो तो जनता तुम्हें उठने ही न दें...धन्यवाद..

Thursday, December 9, 2010

इंडियन मुजाहिद्दीन का मेल पढ़ें

प्रतिबंधित आतंकी संगठन इंडियन मुजाहिद्दीन ने यही मेल मीडिया हाउसों को बनारस धमाके के तुरंत बाद भेजा था....इस मेल को पढ़ने के बाद साफ हो जाता है कि,...भारत सरकार की नीतियां और देश में होने वाली हर गतिविधियों पर इनकी नज़र रहती है...जिसका बदला लेने के लिए य़े किसी भी हद तक जाने को तैय़ार हैं..

Sunday, December 5, 2010

घोटालों का मौसम

देश में आजकल घोटालों का मौसम चल रहा है...हर कांग्रेसी घोटालोंबाजों को बचाने में लगा है तो भाजपा का हर नेता सरकार को आड़े हाथों ले रहा है...सरकार जेपीसी की मांग नहीं मान रही है...और विपक्ष इस पर अड़ा हुआ है...नतीजन संसद की कार्यवाही पंद्रह दिनों तक बाधित हो चुकी है...देश को करोड़ों रुपये का नुकसान हो चुका है...लेकिन सवाल उठता है कि...दोनों अपनी जिद पर क्यों अड़े हुए हैं...जहां विपक्ष जेपीसी के द्वारा प्रधानमंत्री समेत घोटाले में शामिल हर मंत्री से पूछताछ कराना चाहता है॥वहीं, प्रधानमंत्री की निष्क्रियता समेत केन्द्रीय सतर्कता आयोग के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से डांट खा चुकी यूपीए-२ सरकार और बेइज्जती नहीं झेलनी चाहती...लेकिन घोटाला करते समय इन्हें ये याद नहीं रहता कि...जाना एक दिन उसी जनता के दरबार में है॥जिसने उन्हें चुनकर देश की शीर्ष कानून बनाने वाली संस्था में भेजा है...हास्यास्पद बात तो ये है कि...अब सरकार से जुड़े लोग बचाव का रास्ता छोड़ हमले की नीति पर चलने की कोशिश कर रहे हैं...वे एक लाख सत्तर हजार करोड़ रुपये के घोटाले, सत्तर हजार करोड़ रुपये के घोटालों को जायज ठहराने के लिए दस साल पहले के बंगारु लक्ष्मण के तहलका मामले का हवाला दे रहे हैं...और वो भी केन्द्रीय वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी इस तरह का गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर सरकार को और मुश्किलों में ही डाल रहे हैं...

Modi in ETV news






गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी रविवार को हैदराबाद स्थित विश्वप्रसिद्ध रामोजी फिल्म सिटी में थे...सौभाग्य से मैं ईटीवी न्यूज में काम करता हूं॥जो कि रामोजी फिल्म सिटी में ही स्थित है...यहां पर नरेन्द्र मोदी ने अपनी कई वर्षों से दबी उस इच्छा को पूरा किया...जो फिल्मी हस्तियों से सुन सुन के उनके मन में जगी थी॥ उन्होंने रामोजी फिल्म सिटी के हर उस दृश्य का अवलोकन किया...जो फिल्मों में ही लोगों को देखने को मिलता है...इन नजारों को देखकर भाव-भिवोर हुए इस विकासशील पुरुष ने यहां भी रामोजी राव को भविष्य का आईना दिखाते हुए कहा कि...आने वाले दिनों में ये फिल्म सिटी दुनिया के फिल्मकारों की जरुरतों को पूरी करेगी,....गुजरात के इस महानायक ने अपने अमूल्य पलों में से कुछ पल उन पत्रकारों के लिए भी निकाला,,जो दिन रात निस्वार्थ भाव से उन जैसे नेताओं की खबरें चलाते रहते हैं...यहां मोदी की सख्शियत की एक खूबी मैं आपको बताना चाहूंगा कि...कुछ दिन पहले मोदी की पार्टी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी रामोजी फिल्म सिटी पहुंचे थे...लेकिन उन्होंने सिर्फ रामोजी राव से मुलाकात की...लेकिन मोदी ने अपने प्रदेशों से कई सौ किलोमीटर दूर हैदराबाद में रहकर लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को मजबूत कर रहे पत्रकारों को भी तवज्जो दी...यही अंतर है मोदी और दूसरे नेताओं में...ईटीवी के १२ चैनलों के लिए डेस्कों पर अपनी सेवायें दे रहे पत्रकारों में उनके दौरे को लेकर काफी उत्साह देखने को मिला....

Wednesday, February 3, 2010

मुंबई में शिवसेना और मनसे की सरकार

मुम्बई शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की बपौती हो गई है,,,,जो भी इसके बारे में बोलेगा...उसका शिवसेना मुंहतोड़ जवाब देगी..मुम्बई में सिर्फ मराठी ही रहेंगे,,,बाहर के लोगों को शिवसेना मुम्बई में घुसने नहीं देगी,,,अगर घुसते हैं तो उन्हें महाराष्ट्र सरकार के कानून के हिसाब से नहीं,,बल्कि शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कानून के हिसाब से चलना होगा,,, मुम्बई पर पूरे देश का हक बताने वालों कोई भी हो...शिवसेना और मनसे उसे नहीं बख्शेगी,,,चाहे वो देश के सबसे बड़े उद्योगपति मुकेश अंबानी हों,,, दुनिया का सबसे महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर हों या फिर बॉलीवुड का बादशाह शाहरूख खान... आईपीएल में पाकिस्तानी खिलाड़ियों को खिलाने की वकालत करने के बाद बादशाह खान शिवसेना के सबसे बड़े दुश्मन हो गये हैं....कभी उनपर मुसलमान होने के कारण पाकिस्तानी खिलाड़ियों की वकालत करने का आरोप लगाया जाता है तो कभी कांग्रेस के समर्थन पर ऐसी बातें कहने का आऱोप,,,साथ ही शिवसेना के मुखपत्र सामना के संपादक संजय राउत कहते हैं कि,,,वे ऐसा देशभक्ति से प्रेरित होकर कह रहे हैं,,,दिलचस्प बात तो ये है कि,,,शाहरूख खान के बयान के बाद शिवसेना ने धमकी दी कि,,,वे महाराष्ट्र खासकर मुम्बई में किसी भी पाकिस्तानी या ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को नहीं खेलने देंगे,,,अब विदेशों में देश की साख बचाने के लिए जो काम महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री को करना चाहिए,,,वो काम किया केन्द्रीय गृहमंत्री पी चिदम्बरम ने,,,उन्होंने विदेशी खिलाड़ियों को भारत में खेलने पर पूरी सुरक्षा देने की गारंटी ली..तो ये बात भी शिवसेना को नगवार गुजरी,,,शिवसेना के कार्यकारी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने इस पर भी आपत्ति जताते हुए कहा कि,,,चिदम्बरम भारत के गृहमंत्री हैं या फिर पाकिस्तान के,,,शायद उद्धव के मुंह से ऐसी बातें इसलिए निकल रही हैं कि,,,राज्य में शांति व्यवस्था बनाये रखना राज्य सरकार की जिम्म्मेदारी होती है ..और केन्द्र विषम परिस्थितियों में ही इस विषय में हस्तक्षेप कर सकता है,,,नहीं..तो वोट बैंक की राजनीति करने वाली प्रादेशिक पार्टियों के इन चोंचलों को केन्द्रीय गृहमंत्री अच्छे तरीके से रोक सकते थे,,,,ये वही गृहमंत्री हैं,,,जिन्होंने 26नवम्बर के आतंकी हमलों के बाद देश में एक भी बड़ा आतंकी हमला, बम विस्फोट नहीं हुआ,,,और देश इस साल पहले के मुकाबले ज्यादा शांतिपूर्ण रहा,,,विदेशी आतंकियों को औकात में लाने वाले चिदम्बरम उद्धव ठाकरे को भी औकात दिखा सकते हैं,,लेकिन हाथ बंधे होने की वजह से ही जूनियर ठाकरे ऐसा पूछने की हिमाकत कर पाते हैं कि,,,चिदम्बरम हिन्दुस्तान के गृहमंत्री हैं या पाकिस्तान के,,,शिवसेना ने अंबानी, तेंदुलकर और खान को तो नहीं ही छोड़ा...कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर हमला बोलकर उन्होंने मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल दिया है....राहुल गांधी ने एक दिन पहले बोला कि,,,मुम्बई सबकी है और इसपर हर देशवासी का समान अधिकार है,,,साथ ही उन्होंने कहा कि,,,मुम्बई पर 26 नवम्बर को हुए हमले के वक्त मराठियों की जिसने जान बचाई थी,,वो उत्तर प्रदेश और बिहार के ही थे,,,शिवसेना को ये बात भी नगवार गुजरी..उनके मुखपत्र सामना के वाचाल संपादक संजय राउत ने कहा कि,,,,अगर उत्तर प्रदेश और बिहार के जवान इतने सक्षम हैं तो उन्हें जम्मू-कश्मीर, असम और नक्सलियों से निपटने के लिए आंध्र प्रदेश भेजा जाना चाहिए...अब इन महाशय को कौन बताये कि,,,बिहार यूपी के युवा पूरे देश की रक्षा करने में, प्रशासनिक विभाग में , मीडिया उद्योग में और तकनीकी क्षेत्र में देश के किसी भी राज्य के युवाओं से सबसे आगे हैं.. खैर राउत साहब को ये बात भी नगवार गुजरती है कि,,,मुम्बई के विषय में जिसे चाहे वो ही बोलने लगता है,,, उद्योगपति, खिलाड़ी, कलाकार और राजनेता...इसमें उन्हें साजिश की बू आती है...उन्हें लगता है कि,,,वे अकेले किस किस से लड़ेंगे,,,अरे भाई,,,आपको विधानसभा में तीसरे नंबर पर भेजने वाले मनसे की भी सेवा ले सकते हैं...आप दोनों पार्टियों के कार्यकर्ता तो पूरे प्रदेश की पुलिस और प्रशासनिक व्यवस्था पर भारी पड़ते हैं,,,,शिवसेना की सिस्टर कन्सर्न कंपनी मनसे(हालांकि,,अभी अंबानी बंधुओं की तरह इनमें भी मेल-मिलाप नहीं है) के कार्यकर्ता तो इतने ताकतवर हैं कि,,,सिद्धिविनायक मंदिर के बाहर ठंड में फुटपाथ पर सोये अस्सी पचासी वर्ष के गरीब साधुओं पर जमकर डंडा बरसाया ,,,इस पार्टी के मालिक राज ठाकरे तो बेचारे मराठी भाईयों के लिए टैक्सी ड्राईविंग की नौकरी पक्की कराने पर तुले हुए हैं,,,,ऐसा लगता है कि,,,देशभक्ति का ठेका, मराठी मानुषों के हितों की रक्षा करने का ठेका इन्हीं दोनों चाचा भतीजों को ही मिला हुआ है,,,शिवसेना के कार्यकर्ताओं के लिए मुम्बई में शिवसेना की सरकार है,,,शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे उनके मुख्यमंत्री हैं...और उनके मुंह से निकला हर वाक्य ब्रह्मवाक्य है और संविधान की धारा है...इस ब्रह्मवाक्य को पूरा करने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं,,,शिवसेना ने कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी पर हमला बोला,.तो जवाबी हमला भी आया....महाराष्ट्र से ही आने वाले एक केन्द्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल कहते हैं कि,,,शिवसेना और मनसे की गुंडागर्दी को वे मूकदर्शक बनकर नहीं देख सकते,,,,लेकिन सवाल उठता है कि,,,लगभग एक दशक से मुम्बई पर राज करने वाली कांग्रेस को अब क्यों उनकी करतूत गुंडागर्दी लगने लगी,,,अभी तक तो वोट बैंक की राजनीति के नाम पर घृणा की इस आग में खूब घी डाला,,,लेकिन जब यही आग केन्द्र सरकार के युवराज और कांग्रेस के पास पहुंची....तो उन्हें बुरा लगने लगा,,,और मूकदर्शक न बन रहने की बात कहने लगे,,,,अब तो ऐसा ही लगता है कि,,,महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी की सरकार के समानांतर एक और सरकार चल रही है और वो सरकार है शिवसेना और मनसे की सरकार.....

Tuesday, January 26, 2010

६० साल का भारत

भारतीय गणतंत्र आज साठ साल का हुआ। यानी इसके क्या मायने हैं? वह साठ साल का बुड्ढा हुआ या पट्ठा हुआ? अपने गांवों में कहते हैं, साठा सो पाठा। सचमुच 60 साल का भारत अब पट्ठा हुआ जा रहा है। ये 60 साल तो सिर्फ कहने के लिए हैं। ऐसे साठ साल भारत के इतिहास में सैकड़ों बार आ चुके हैं। जब यूनान और रोम, गणतंत्र की सिर्फ कामना करते थे, भारत में गणराज्य या नगर राज्यों की परंपरा काफी पुरानी पड़ चुकी थी। कहीं इस महान परंपरा का प्रभाव ही तो नहीं है, जिसके कारण हमारे गणतंत्र के पिछले साठ साल यूरोप और अमेरिका के गणतंत्रों और लोकतंत्रों से कहीं बेहतर सिद्ध हुए हैं? 26 जनवरी 1950 को भारत ने जो संविधान अपने लिए स्वीकार किया था, वह आज भी दनदना रहा है, जबकि हमारे अड़ोसी-पड़ोसी देशों में उनके संविधान पांच-पांच छह-छह बार बदल चुके हैं। भारत गणतंत्र हुआ, उसके पहले दिन ही हर आदमी और हर औरत को वोट का अधिकार मिल गया, जबकि ब्रिटेन maignakarta (12 15) के बाद इसी काम के लिए 700 साल लग गए, अमेरिका को गृह-युद्ध की विभीषिका से गुजरना पड़ा, अनेक यूरोपीय राष्ट्रों को रक्त-स्नान करना पड़ा और आज भी चीन और रूस जैसे शक्तिशाली और बड़े राष्ट्र लोकतांत्रिक व्यवस्था से काफी दूर हैं। परंपरा की घुट्टी में पिसा हुआ लोकतंत्र का संस्कार हमारे यहां इतना प्रबल है कि भारत आज दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहलाता है, जबकि उसके आस-पास के कई देशों में या तो फौजी तख्ता पलट हो चुके हैं या वे गृह-युद्ध की गिरफ्त में फंसे हुए हैं। भारत ने लोकतंत्र को जिंदा रखा है और लोकतंत्र ने भारत को जिंदा रखा है। हमारे देखते-देखते कितने देश टूट गए? पाकिस्तान, सोवियत संघ, यूगोस्लाविया, चेकोस्लोवाकिया! कितने ही देश टूटे तो नहीं लेकिन टूटे जैसे दिखाई पड़ते हैं, जैसे अफगानिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, सोमालिया, इराक, जार्जिया आदि लेकिन भारत है कि आकार और जनसंख्या में इतना बड़ा होते हुए भी 60 साल से सही-सलामत ही रहा है। बल्कि कुछ बढ़ा है। गोवा और सिक्किम जुड़े हंै। लद्दाख और कश्मीर में कुछ नुकसान जरूर हुआ है, लेकिन ये क्षेत्र पहले से ही विवादास्पद थे।भारत की लोकतांत्रिकता पश्चिम के राष्ट्रों से इस अर्थ में भी बेहतर है कि वहां फासीवाद और नात्सीवाद का उदय हुआ और उन देशों के दलन के लिए सारे संसार को विश्व युद्ध में उतरना पड़ा लेकिन आपातकाल के थोड़े से बुखार के अलावा भारत का लोकतंत्र कभी किसी अस्पताल में भर्ती नहीं हुआ। साठ साल का हमारा गणतंत्र कितना स्वस्थ और परिपक्व है कि जिस बात पर अमेरिका 200 साल बाद गर्व कर रहा है यानी ओबामा का राष्ट्रपति बनना, वह हमारे यहां गणतंत्र के 17वें साल (1967) में ही हो गया। काबुल के ek dost ne मुझसे पूछा था कि ‘मुल्के-हिंदुस्तान का बादशाह एक मुसलमान कैसे बन गया?’ क्या यह कम बड़ी बात है कि इस देश में राष्ट्रपति दलित होता है, प्रधानमंत्री सिख होता है, उपराष्ट्रपति मुसलमान होता है, लोकसभा का अध्यक्ष एक कम्युनिस्ट होता है और प्रतिपक्ष का नेता पाकिस्तान के सिंध में पैदा हुआ होता है और सारी व्यवस्था ठीक-ठाक चल रही होती है। यह भारतीय गणतंत्र का चमत्कारिक स्वरूप ही है कि इटली में पैदा हुई एक गौरांग महिला सत्तारूढ़ दल की अध्यक्ष है और उसके सम्मान और स्वीकृति में कहीं कोई कसर नहीं है। सहिष्णुता और समन्वय लोकतंत्र का प्राण है और भारत उसका साक्षात प्रमाण है। यदि हम पलटकर देखें तो हमारा सीना गर्व से फूले बिना नहीं रहेगा। 60 सालों में हम कहां से कहां पहुंच गए। जब भारत आजाद हुआ, तब हम सुई भी नहीं बना सकते थे लेकिन अब वही लंगोटधारी भारत हवाई जहाज और रॉकेट बना रहा है, अंतरिक्ष-यान और मोटरें बना रहा है और संसार का छठा परमाणु शक्तिसंपन्न राष्ट्र बन गया है। कुछ ही वर्षो में वह दुनिया की तीसरी आर्थिक महाशक्ति बन जाएगा। 36 करोड़ लोगों का भारत अब 116 करोड़ का हो गया है लेकिन उसके नेताओं को अब अनाज और डॉलरों के लिए किसी मालदार देश के सामने झोली नहीं फैलानी पड़ती। अब तो यह विचार भी हवा में तैर रहा है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की तरह हर नागरिक को भोजन का अधिकार भी मिले। 1950 में भारत में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 255 रुपए थी। आज वह 37,500 रुपए है। पहले सिर्फ 16 प्रतिशत लोग साक्षर थे, अब 68 प्रतिशत हैं। जो भारत कल तक यूरोप के छोटे-छोटे देशों से कर्ज मांगता था, आज उसने अफगानिस्तान में 6-7 हजार करोड़ खर्च किए हैं और हाल ही में बांग्लादेश को 4,500 करोड़ रुपए का अनुदान दिया है। आर्थिक प्रगति तो चीन ने भी की है लेकिन चीन में नागरिक अपने मुंह का इस्तेमाल सिर्फ खाने के लिए करते हैं, भारत की तरह बोलने के लिए भी नहीं। इसके अलावा चीन में भारत के मुकाबले अमीरी-गरीबी की खाई कई गुना अधिक गहरी है। भ्रष्टाचार में भी वह हमसे आगे है। चीन को भारत बनने में अभी कई दशक लगेंगे लेकिन चीन जैसी आर्थिक प्रगति करने में भारत को एक दशक भी नहीं लगेगा। हमारे गणतंत्र की जवानी का इससे बड़ा प्रमाण क्या होगा? हम जरा कल्पना करें कि हमारा गणतंत्र अब से 40 साल बाद कैसा लगेगा? शतायु तक पहुंचते-पहुंचते वह पूर्ण महाशक्ति बन जाएगा। उन राष्ट्रों से भी बेहतर, जो आज महाशक्तियां कहलाते हैं। ये महाशक्तियां भयंकर महाशक्ति हैं। भारत भयंकर नहीं, प्रियकर महाशक्ति बनेगा। भारत महाशक्ति बनता चला जा रहा है लेकिन इस नए विराट रूप में ढलने के लिए न तो वह अपनी जनता का खून पी रहा है और न ही उसने उपनिवेश खड़े किए हैं। कोई भी सच्च लोकतांत्रिक राष्ट्र ऐसा नहीं कर सकता। उसके कुछ नेता या स्वार्थी तबके ऐसा करना चाहें तो भी वे सफल नहीं हो सकते, क्योंकि हर नागरिक को समान मताधिकार है और जनता जागरूक है। ऐसा भारत ज्यों-ज्यों मालदार और ताकतवर होता चला जाएगा, उसकी समृद्धि उसके लोगों में बंटेगी और वह दुनिया के जरूरतमंद राष्ट्रों का सहोदर सिद्ध होगा। उसका रास्ता वह नहीं होगा, जो चीन और अमेरिका का है। उसका अपना और नया रास्ता होगा। साठ वर्ष का यह युवा गणतंत्र जब सौ वर्ष का होगा तो इसकी जवानी अपने शिखर पर होगी। तब क्या भारत में कोई भूखा सोएगा? तब क्या भारत में कोई निरुत्तर होगा? तब क्या ठंड में कुछ लोग सुबह सड़क पर मरे हुए पाए जाएंगे। क्या कोई आदमी इसलिए दम तोड़ेगा कि उसका इलाज न हो सका? नहीं, ऐसा नहीं होगा। जो होगा वह अजूबा होगा। समय के इतिहास में एक विलक्षण गणतंत्र का उदय होगा।

Friday, January 15, 2010

महंगाई का ज्योतिष..

बहुत पहले एक कहावत सुनी थी...अब क्या चुपचाप बैठे हो, महंगाई के असोरा (बरामदा) में...राशन झोला में और पैसा बोरा में..आज की स्थिति देखकर पहले बचपन में सुनी गयी वो कहावत आज भी कितनी सही साबित हो रही है...मज़ेदार बात तो ये है की माननीय कृषि मंत्री कभी इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराते हैं तो कभी कहते हैं की मैं ज्योतिषी नहीं हूँ...भैया...फिर क्या करने बैठे हो....कृषि मंत्रालय में... माना, महंगाई सिर्फ देश में ही नहीं है...हर जगह है...कच्चे तेल की कीमतें ८० डोलोर प्रति बैरल पहुँच गयी है...लेकिन आप कैसी सरकार चला रहे हैं... निजी कम्पनियां फायदा कमा रही हैं...सरकार घाटे में है....आम आदमी परेशान है....गोदामों में गेहूं सड़ रहा है....दाल की फसल कहीं ढंग से नहीं हो रही है आखिर क्यों....इसका जवाब तो आप ही को देना पड़ेगा न मंत्रीजी... कम से कम दाल चावल के साथ ऐसी ब्यवस्था तो कीजिये की आम जनता सुबह सुबह उठकर एक प्याली चाय पिने के पहले ये तो न सोचे कि...चलो छोडो न पीते हैं...नहीं तो चीनी ख़तम हो जाने पे पचास का एक नोट खर्च हो जायेगा...कैसे मंत्री हैं....बाकि हर चीज़ तो महँगी है ही ...किताब कॉपी...पेन पेंसिल...सेन्ट, क्रीम,,यहाँ तक कि एक सेट पैंट शर्ट खरीदने जाते हैं तो कम से कम हज़ार रुपये तो रखने ही पड़ते हैं....जूते तो 1200-1500- के नीचे के ढंग के मिलते ही नहीं..लेकिन फिर भी भारत की सहनशील जनता सब कुछ सहने के लिए तैयार है....तो माननीय पवार साहब...पेट पर हो रहे हमले को रोक लीजिये...नहीं तो हिन्दुस्तानियों ने तो २०० साल की अंगरेजी सरकार को उखाड फेंका था...आपकी यूपीए सरकार किस खेत की मूली है...

Saturday, January 9, 2010

दम तोड़ता रहा जवान....देखते रहा जमघट
















तमिलनाडु के तिरूनेलवली में शुक्रवार यानि आठ जनवरी को ऐसी घटना घटी,,,जिसने मानवता को शर्मसार कर दिया...तमिलनाडु पुलिस के एक सब इंस्पेक्टर को कुछ लोगों ने देशी बम मारकर मोटर साइकिल से गिरा दिया...फिर नारियल काटने वाले हंसिया से उसके पैर काट दिये और सिपाही के गर्दन पर भी वार किया,,,,इस सबके बावजूद सिपाही के हौंसले में कोई कमी नहीं आई और वो खुद मदद के लिए उन लोगों को बुलाता रहा जो उसके इस हाल का तमाशा देख रहे थे,,,लेकिन क्या मजाल कि कोई उसकी सहायता के लिए आगे आता,,,,पैर कटा, बम से जख्मी और गर्दन पर वार झेले पुलिस सब इंस्पेक्टर के दर्द की इतनी ही इन्तिहा नहीं रही,,,दुख तो तब हुआ जब तमिलनाडु सरकार के तीन तीन मंत्री अपने काफिले के साथ उस हृदयविदारक घटना को देखते रहे....बाद में पता नहीं, भगवान की कृपादृष्टि हुई या उन्हें खुद-ब खुद सद्बुद्धि आ गई,,,उनमें से कुछ लोग आगे बढ़े और उस जाबांज को अस्पताल ले गये,,,लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी,,,वो जवान मौत को गले लगा चुका था....सवाल उठता है कि क्या सेवा को धर्म मानने वाले देश में इस तरह की घटना बर्दाश्त करने लायक है,,,और खास कर उस इंसान के लिए..जो मरने तक लोगों की सुरक्षा और सेवा के लिए प्रतिबद्ध था,,,पैर कटने और गर्दन पर वार झेलने के बावजूद वो जवान उट कर बैठा,,,लोगों को सहायता के लिए हाथ हिला हिला कर बुलाता रहा,,,कहां गई थी,,,इंसानियत...कहां गई थी मानवता,,,क्या किसी को तरस नहीं आय़ा...उन नेताओं का जमीर कहां सोया था,,,जिनकी सुरक्षा में लगे पुलिस और सुरक्षा बल के जवान दिन रात लगे रहते हैं और अपनी जान तक की परवाह नहीं करते,.,,,बताया जा रहा है कि,,,वो सब इंस्पेक्टर किसी और के चक्कर में जान गंवा बैठा...लेकिन क्या तमिलनाडु में इस तरह किसी को मारे जाने को जायज ठहराया जा सकता है...चाहे वो पुलिस का जवान हो या कोई और,,,इस घटना को देखने के बाद तो यही लगता है कि,,,हम इक्कसवीं सदी के भारत में नहीं, बल्कि बर्बर युग में रह रहे हैं,,,,जरूरत इस बात की है कि,,,मारने वाले को तो इतनी कड़ी सजा दी जाये कि,,,दूसरा कोई इस तरह का घिनौना कारनामा करने से पहले एक हजार बार सोचे...और छोड़ना उन नेताओं को भी नहीं चाहिए,,,जो उस जवान की मौत का तमाशा देखते रहे,,,

Friday, January 8, 2010

जम्मू से सेना हटाने का फैसला

जम्मू कश्मीर से सरकार ने सेना हटाने का फैसला किया है...जो की किसी भी स्थिति में सही नहीं कहा जा सकता...कहा जा रहा है की सरकार ने ये कदम अलगाववादियों को खुश करने के लिए उठाया है....लेकिन जिस राज्य की स्थिति इतनी ख़राब है कि.... कभी आतंकी फिदायीन हमले कर देते हैं तो कभी घाटी में प्रदर्शनकारियों से निपटने में राज्य पुलिस के छक्के छूट जाते हैं...वैसे भी दुश्मन देश पाकिस्तान जिसकी नजर हमेशा कश्मीर पर लगी रहती है और वहां आतंक फ़ैलाने के लिए कुछ भी करने को तैयार है...उस राज्य से मात्र इसलिए सेना हटाई जा रही है...ताकि अलगाववादी खुश हो सकें ...वे अलगाववादी जिनकी न भारत के संविधान में निष्ठा है..और न ही भारत सरकार में...देश के सबसे अशांत राज्य से सेना हटाने का फैसला किसी भी स्थिति में ठीक नहीं कहा जा सकता क्योंकि अगर घाटी में कुछ भी अशांति फ़ैलती है तो विश्व बिरादरी में ये कहा जायेगा कि राज्य में शांति व्यवस्था बनाये रखने सरकार असफल रही है...