Wednesday, August 26, 2015

आरक्षण की मांग को लेकर आजकल हार्दिक पटेल सुर्खियों में हैं....उनकी मांग है कि पटेलों यानी पाटीदार समुदाय को ओबीसी आरक्षण दिया जाए...मेरा सवाल ये है कि राज्य के 20% पटेल समुदाय के लिए आरक्षण की मांग कितनी जायज है जबकि गुजरात के 182 विधायकों में 42 पटेल समाज से हैं... राज्य के कुल 26 सांसदों में से 6 पटेल हैं...  अब तक गुजरात में 4 मुख्यमंत्री पटेल समाज से रहे हैं... मौजूदा मुख्यमंत्री आनंदी बेन भी पटेल समाज से हैं...  गुजरात सरकार के 7 मंत्री पटेल समाज से हैं...  गुजरात में प्रमुख बिल्डर्स, दिग्गज हीरा व्यवसायी पटेल हैं...  US में पटेल सरनेम, सबसे प्रचलित 500 की लिस्ट में 174वें स्थान पर हैं....तो ऐसी स्थिति में पाटीदारों यानी पटेलों के लिए आरक्षण की मांग का मतलब क्या है....ये तो एक बहाना मात्र है अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का...कहा जाता है कि आरक्षण पिछड़ी जातियों में पैदा हुए लोगों को ऊपर उठाने का एक सशक्त हथियार है...लेकिन ऊंची जातियों में पैदा होने वाले गरीब बच्चों को ऊपर उठाने का कौन सा उपाय है....हमने बहुत सारे ऐसे ऊंची जाति के बच्चों को देखा है जो सिर्फ गरीब होने की वजह से पढ़ नहीं पाते हैं...उन्हें आरक्षण और शिक्षा की बात तो छोड़िए...पिता की मौत के बाद मां और बहनों के लिए रोटी, कपड़े का जुगाड़ कैसे होगा...इसके लिए शहरों में जाकर फैक्ट्री में मजदूरी करना पड़ता है...बहनों की पढ़ाई छूट जाती है...किसी मौसी, मामा, पड़ोसी या चाचा ने मदद कर दी तो ठीक नहीं तो बस जीवन की गाड़ी खींचनी पड़ती है...यही स्थिति किसी दलित या पिछड़ी जाति के परिवार की हो तो तमाम सामाजिक योजनाएं हैं...जो परिवार के हर सदस्य का ख्याल रखने के लिए लगभग हर राज्य में हर सरकारों ने चला रखी हैं...कोई भी चुनाव हो...कोई भी नेता हो, कोई भी सरकार हो..सब दलितों के लिए ही मरते हैं..कुछ ज्यादा सेक्युलर हो गए तो मुसलमानों के लिए मरने लगे...मेरा सवाल है कि अगड़े गरीबों के लिए कौन है? कौन है जो अगड़ों की मौत पर आंसू बहाने आए..

Thursday, August 9, 2012

बिना मकसद के खत्म हुआ अन्ना का टेंशन

सरकार की सोलह महीने पुरानी टेंशन खत्म हो गई....ले के रहेंगे जनलोकपाल बिल के नारे के साथ सरकार को चुनौती देने उतरी टीम अन्ना का कोई अब अस्तित्व ही नहीं बचा...दिलचस्प बात तो ये है कि...मकसद तो हासिल हुआ नहीं...नई सियासी  पार्टी बनाने की घोषणा कर दी गई....नई उर्जा, नये जोश के साथ सड़कों पर अन्ना के समर्थन के लिए उतरे नौजवानों का सारा उत्साह भी काफूर हो गया... बेचारे मनमसोस कर रह गये...लेकिन सबसे ज्यादा मजा सरकार को आय़ा....सरकार के लिए सरदर्द बने बिन बुलाये मेहमान अन्ना की टीम ने जो नाक में दम कर रखा था वो टेंशन खत्म हुई,..अब सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि...क्यों 76 के बाद का सबसे बड़ा आंदोलन कहे जाने वाले आंदोलन की ये परिणति हुई।....क्यों अन्ना की ये मुहिम बिना रंग दिखाये खत्म हो गई....इसका जवाब जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा....ये इस सरकार की या यूं कहें कि...केन्द्रीय गृहमंत्री रहे पी चिदंबरम के अतिउत्साह का ही दुष्परिणाम था कि...अन्ना हीरो बन गये औऱ सरकार विलेन....अन्ना को आंदोलन के लिए जगह देने की बजाये तिहाड़ में डालना सरकार की सबसे बड़ी भूल थी.. चार जून को रामदेव के साथ रामलीला मैदान में हुई घटना ने भी अन्ना के आंदोलन को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई।...लेकिन जब सरकार को अपनी भूल का अहसास हुआ तो केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, गोपाल राय  के अलावा अन्ना हजारे के आमरण अनशन पर बैठने को भी कोई भाव नहीं दिया..न कोई जबर्दस्ती, न कोई भाव देने वाला बयान...टीम अन्ना को लगा कि,...इस अनशन का कोई अंत नहीं है...शायद जिद में केजरीवाल, सिसोदिया औऱ गोपाल राय की जान भी चली जाये...तब टीम अन्ना ने कोई रास्ता न देखकर आंदोलन खत्म करना ही बेहतर रास्ता समझा...तब सवाल था कि...सरकार तो मानी नहीं...आंदोलन इतने दिनों तक चला...इसे खत्म कैसे करें....तब एक ऐसा शिगूफा छोड़ा गया कि..सांप भी  मर जाये...और लाठी भी टूट जाये... चुनाव में उतरकर सरकार से लड़ने का ऐसा शिगूफा छोड़ा गया कि....जनता सोचती रह जाये और आंदोलन को खत्म करने का रास्ता भी चुन लिया जाये....ठीक ऐसा ही हुआ।..लोग ये सोचने लगे कि...अब पार्टी बनेगी...सरकार में टीम अन्ना आयेगी और लोकपाल बनायेगी...लेकिन ये ऐसी दूर की कौड़ी है कि....जब तक ये सब होगा...लोग बाकी चीजों की तरह इसे भी भूल जायेंगे...और इन सबके बीच अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, कुमार विश्वास, गोपाल राय, योगेन्द्र, शाजिया और न जाने कौन कौन सेलिब्रेटी बन गये....जनलोकपाल बना न बना....टीम अन्ना का भला हो गया और अन्ना हजारे अपने पुराने मठ में लौट गये....लोग भविष्य की तैयारियों के बारे में सोचने लगे...सरकार बला टलने पर जश्न मनाने लगी...और टीम अन्ना के सदस्य बिना टीम के सेलिब्रेटी हो गये...

Thursday, May 12, 2011

धत् बुर्बक...राहुल गांधी


कांग्रेस के इस युवराज को कभी कभी आम आदमी की याद आ जाती है...लेकिन वो भी कभी कभी....मजेदार बात ये है कि...आम आदमी के नाम पर लड़ने का दिखावा करने वाला ये राहुल बाबा के इस पैंतरे कॉ मायावती ने बुरी तरह कुचल दिया....यूपी की हर बड़ी घटना के चार दिनों बाद घटनास्थल पर पहुंचने वाले भारत के इस नये-नवेले राजनीतिज्ञ को भट्टा परसौल की घटना से थोड़ी फुटेज मिली....महिलाओं को सांत्वना दी...लोगों के दुख दर्द बांटने की एक्टिंग की....धरना पर भी बैठे..मगर आपको याद दिला दें कि...यही राहुल गांधी थे...जिन्होंने अन्ना हजारे के अनशन को हीरोगिरी कहा था.. और कहा था कि...धरने पर बैठने से समस्यायें खत्म नहीं होती....आज हम इस कांग्रेस के दुलारे लेकिन बुर्बक महासचिव से पूछना चाहते हैं कि...आपका ये धरना हीरोगिरी नहीं तो क्या है....आपको गैर कांग्रेसी सरकारों में ही किसानों और महिलाओं पर अत्याचार क्यों नजर आता है...؟आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के किसान आपको याद नहीं आते हैं...आंध्र प्रदेश में तो महिलाओं पर गोलियां तक चलाई जाती हैं....तब राहुल बाबा को न गोलियों की आवाज सुनाई देती है..न किसानों की समस्या दिखाई देती है,....मिशन यूपी-2012 की तैयारी में लगे राहुल गांधी ने शायद बिहार के चुनाव से कुछ भी नहीं सीखा....खैर अगले साल जनता उनको और उनकी औकात बतायेगी..

Tuesday, May 3, 2011

दिग्गी के कमीने बोल


कांग्रेस के इस वाचाल महासचिव दिग्विजय सिंह मुसलमानों का वोट अपनी पार्टी को खुश करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं....कभी बाटला हाउस मुठभेड़ पर सवाल उठाने के बाद आजमगढ़ जाकर आतंकियों के परिजनों को सांत्वना देते हैं तो कभी मुम्बई हमले में मारे गये मुम्बई एटीएस के चीफ हेमंत करकरे की मौत के पीछे हिन्दू संगठनों का हाथ बताते हैं...इतना होता तो फिर भी काफी था॥लेकिन इस आतंकियों के पैरोकार को अब अन्तर्राष्ट्रीय आतंकवादियों से भी लगाव होने लगा है॥ओसामा की हत्या के बाद उसके उचित अंतिम संस्कार की वकालत करने वाले दिग्विजय सिंह का मुसलमानों को बरगलाने का ये हथकंडा पुराना पड़ गया है॥मुसलमान भी इस महाराजा की गंदी नीयत को समझ चुके हैं॥लेकिन ये बेशर्मी की हर हद पार करते हुए किसी को भी गाली देने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं,...इनकी मालकिन सोनिया भी दूसरे धर्मों के लोगों को दिखाने के लिए अपने इस पालतू बेगैरत और बेवकूफ महासचिव को बुलावा भेज देती है....लेकिन बाहर निकलने के बाद भी ये अड़ियल मध्यप्रदेश का पूर्व मुख्यमंत्री सीना ठोककर अपनी बात पर कायम रहने की बात करता है....हमें तो शायद यही लगता है कि...मुकेश चंद्र शर्मा की शहादत को भूलकर आजमगढ़ जाने वाला ये राजनीतिज्ञ अब सउदी अरब जाकर ओसामा की मौत पर आंसू बहायेगा औऱ अपने सर मुड़ायेगा...मगर समस्या ये है कि,...इसे सबक सिखाने वाला कोई नहीं मिल रहा॥जय हिन्द....

Sunday, January 16, 2011

लालचौक पर तिरंगा फहराने की भाजपा की घोषणा..राजनीति या चुनौती


भाजपा ने घोषणा कर दी है कि...२६ जनवरी २०११ को उसकी युवा ईकाई श्रीनगर के लालचौक पर तिरंगा फहरायेगी...जिसे कांग्रेस औऱ नेशनल कांफ्रेंस की सरकार राजनीति करार दे रही है... लेकिन मेरा सवाल है कि...अलगाववादियों के डर से जम्मू-कश्मीर को अपने देश के अखंड हिस्सा मानने वाले कांग्रेसी क्यों नहीं भाजपा के इस कदम का समर्थन कर रहे हैं....क्यों नहीं, अलगाववादियों के मुंह पर करारा तमाचा मारने की भाजपा के युवा नेता अनुराग ठाकुर की इस घोषणा का स्वागत कर रही....शायद इसमें कांग्रेस की गलती नहीं...क्योंकि उसे तो करारा तमाचा खाने की आदत है...कभी चीन की तो कभी पाकिस्तानी कबायलियों की...तो कभी नई दिल्ली में केन्द्र सरकार के नाको के नीचे सरेआम कश्मीर की आजादी की वकालत करने वाले अलगाववादियों की...उदाहरण तो कई हैं...किस किस को गिनाऊं...कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की सरकार क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था करती कि....भाजपा कई आतंकवादी घटनाओं का गवाह रहे लालचौक पर झंडा फहरा सके...आपको बता दें कि...इस लालचौक पर देश के दुश्मन अलगाववादियों के डर से प्रदेश सरकार ने देश की शान तिरंगा झंडा फहराना बंद कर दिया है...जम्मू-कश्मीर सरकार का तर्क है कि॥बड़ी मुश्किल से प्रदेश में पत्थरबाजों से निजात मिली है इस घटना से वहां फिर से स्थिति असामान्य हो सकती है...एनडीए सरकार में मंत्री रह चुके उमर अब्दुल्ला जी से...मेरा नम्र निवेदन है कि...छोड़ दो उस प्रदेश की गद्दी॥जिसके पत्थरबाज नागरिकों को तुम काबू में नहीं कर सकते...जहां की स्थिति मात्र इसलिए खराब हो सकती है...कि देश के शान तिरंगे को कोई फहराने की कोशिश वहां करेगा॥
अगर अनुराग ठाकुर वहां झंडा फहरा देने में सफल होते हैं तो वे लाखों करोड़ों राष्ट्रवादी लोगों के लिए आदर्श कायम करेंगे...आपको बता दें कि...इससे पहले जम्मू-कश्मीर की भाजपा ईकाई ऐसी कोशिश कर चुकी है॥लेकिन प्रदेश सरकार ने बड़ी बहादुरी से इनकी इच्छाओं को कुचल दिय़ा था और पत्थरबाजों को काबू में करने में उसी सरकार को तीन महीने लगे...जिसमें सौ से ज्यादा लोग मारे गये...चलते-चलते...."जय हिंद॥"

कांग्रेस की चुनौती..बढ़ा दी है महंगाई...जो करना है कर लो...

पहले प्याज फिर टमाटर और दूसरी चीजें...अब पेट्रोल भी महंगा हो गया....क्या कर रही है सरकार...कितना चूसेगी लोगों का खून,...पहले कहा जाता था ये महंगाई गरीबों को मार डालेगी...लेकिन "यूपीए-टू की कल्याणकारी योजनाओं" से महंगाई इतनी बढ़ गई कि...अब सामाजिक सद्भाव भी पैदा हो गया...क्योंकि क्या गरीब क्या मध्यम वर्ग॥सब महंगाई डायन(सोनिया डायन...ओफ्फ्फ ये मैं नहीं कह रहा...बल्कि यूपी के शिक्षामंत्री का ये जुमला है...) के शिकार हो गये॥।इसलिए समाज का हर तबका सरकार को कोस रहा है...पहले तो करोड़ों अरबों डकारे...कार्रवाई के नाम पर उनसे गद्दी ले ली...उनकी जगह किसी और को बिठा दिया....और अब महंगाई के नाम पर जनता का खून चुसने में लगे हैं... उधर, महंगाई के मुद्दे पर प्रधानमंत्री समेत सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों की दो दो तीन-तीन दिन बैठक हुई...लोगों ने समझा कि॥बैठक बेनतीजा समाप्त हो गई।॥लेकिन ये बैठक का ही असर था कि...प्याज के आंसू रो रही जनता को अब पेट्रोल की कीमतों में हुई ढ़ाई रूपये की बढ़ोतरी से भी दो चार होना पड़ेगा....अपनी यूपीए सरकार तो ऐसी है कि॥मानो जनता को चुनौती दे रही हो कि...बढ़ा दी है महंगाई॥जो करना हो कर लो...

दिलचस्प बात तो ये है कि॥जब पच्चीस दिसंबर को समाप्त हुए सप्ताह में खाद्य महंगाई दर १८.३२ फीसदी हुई तो वित्तमंत्री को इसकी जानकारी तक नहीं थी॥नई दिल्ली में पत्रकारों ने जब उनसे जानना चाहा कि...मंत्री जी खाद्य महंगाई दर तो इतनी हो गई है....तो उनका जवाब था कि...कितना...? ओहो..१८.३२ फीसदी...अच्छा तब तो ये चिंता की बात है...लेकिन अगले ही हफ्ते जब इस सरकारी आंकड़े में मात्र डेढ़ फीसदी की कमी आई॥तो पत्रकारों को उनसे पूछने की भी जरूरत नहीं पड़ी...खुद गाड़ी से निकले॥और कहा कि॥खाद्य महंगाई दर में डेढ़ फीसदी की कमी आ गई है....लेकिन सवाल उठता है कि... इन आंकड़ों का आम आदमी करे तो क्या करे...सब्जियां तो ऐसी महंगी हुई हैं कि...डॉक्टरों की हरी सब्जियां खाने की सलाह भी मरीज नहीं मान सकेंगे...अब पेट्रोल पर सरकारी नजरें टेढ़ी हुई हैं....अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ी कीमतों का हवाला देते हुए जनवरी महीने में ही दोबारा पेट्रोल की कीमतों में ढ़ाई रुपये की बढ़ोतरी कर दी...भाजपा ने इसे कांग्रेस की साजिश करार दिया है तो कांग्रेस ने बेशर्मी का परिचय देते हुए सरकार के इस फैसले का समर्थन किया है....आम आदमी के नाम पर सत्ता में आने वाली कांग्रेस ने एक तरफ तो आम आदमी का बेड़ा गर्क तो किया ॥दूसरी। तरफ भ्रष्टाचारियों को जी-जान से बढ़ावा दिया....इस बेशर्म सरकार की ढ़ीठता देखिये....महंगाई बढ़ने का कारण उसे अपनी तथाकथित जन कल्याणकारी योजनायें लगती हैं...जिसकी वजह से गरीब आदमी दो वक्त की रोटी खाने लगा है और उसका जीवन-स्तर सुधरा है...और आम आदमी के पास पैसे आने के बाद वो नई नई चीजें खरीद रहा है...इसलिए चीजों के दामों में बढ़ोतरी हो रही है...
इस कांग्रेस सरकार से मेरा तो यही आग्रह है कि... अमां यार...बंद करो अपनी ये तथाकथित जनकल्याणकारी योजनायें...जिससे महंगाई तो बढ़ ही रही है...भ्रष्टाचार भी अपने चरम पर जा पहुंचा है॥औऱ जिस व्यक्ति को वो फायदा पहुंचने की बात कर रहे हैं॥कभी पैर जमीन पर तो उतारो॥सत्ता के शीर्ष पर बैठे हुए सत्ता के ...., वो फायदा तमाम राजनेताओं, नौकरशाहों और पंचायती व्यवस्था में सत्ता संभाले लोगों तक ही सिमटा पड़ा है...न कि आम आदमी॥जिसके लिए ये योजनायें तथाकथित रुप से चलाई जा रही हैं....