Friday, January 15, 2010

महंगाई का ज्योतिष..

बहुत पहले एक कहावत सुनी थी...अब क्या चुपचाप बैठे हो, महंगाई के असोरा (बरामदा) में...राशन झोला में और पैसा बोरा में..आज की स्थिति देखकर पहले बचपन में सुनी गयी वो कहावत आज भी कितनी सही साबित हो रही है...मज़ेदार बात तो ये है की माननीय कृषि मंत्री कभी इसके लिए ग्लोबल वार्मिंग को जिम्मेदार ठहराते हैं तो कभी कहते हैं की मैं ज्योतिषी नहीं हूँ...भैया...फिर क्या करने बैठे हो....कृषि मंत्रालय में... माना, महंगाई सिर्फ देश में ही नहीं है...हर जगह है...कच्चे तेल की कीमतें ८० डोलोर प्रति बैरल पहुँच गयी है...लेकिन आप कैसी सरकार चला रहे हैं... निजी कम्पनियां फायदा कमा रही हैं...सरकार घाटे में है....आम आदमी परेशान है....गोदामों में गेहूं सड़ रहा है....दाल की फसल कहीं ढंग से नहीं हो रही है आखिर क्यों....इसका जवाब तो आप ही को देना पड़ेगा न मंत्रीजी... कम से कम दाल चावल के साथ ऐसी ब्यवस्था तो कीजिये की आम जनता सुबह सुबह उठकर एक प्याली चाय पिने के पहले ये तो न सोचे कि...चलो छोडो न पीते हैं...नहीं तो चीनी ख़तम हो जाने पे पचास का एक नोट खर्च हो जायेगा...कैसे मंत्री हैं....बाकि हर चीज़ तो महँगी है ही ...किताब कॉपी...पेन पेंसिल...सेन्ट, क्रीम,,यहाँ तक कि एक सेट पैंट शर्ट खरीदने जाते हैं तो कम से कम हज़ार रुपये तो रखने ही पड़ते हैं....जूते तो 1200-1500- के नीचे के ढंग के मिलते ही नहीं..लेकिन फिर भी भारत की सहनशील जनता सब कुछ सहने के लिए तैयार है....तो माननीय पवार साहब...पेट पर हो रहे हमले को रोक लीजिये...नहीं तो हिन्दुस्तानियों ने तो २०० साल की अंगरेजी सरकार को उखाड फेंका था...आपकी यूपीए सरकार किस खेत की मूली है...

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